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जन्मदिन पर तुम्हारे।

  • Writer: Pahadan
    Pahadan
  • Jul 28, 2020
  • 1 min read

तड़के सुबह उठकर

कोहरे की चाॅक से

बादलों की स्लेट पर

एक दुआ भेजी थी।


जो थोड़ा दिन चढ़ा

चूल्हे की आंच पर,

देर तक भून कर

थोड़ा हलवा बनाया था।


सांझ जो हुई तो,

गुलाबी रोशनी के आकाश से

कुछ टुकड़े तोड़ के

एक मफलर बुना था।


ना जाने क्यों ना पहुंची तुम तक,

तड़के सुबह की दुआ

हलवे की खुश्बू

और मफ़लर की गर्माहट।


पर,

किया सब कुछ

कल्पनाओं के शहर में

जन्मदिन पर तुम्हारे।


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