बात तो करेंगे ना?
- Pahadan
- Mar 21
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हमारी आख़िरी मुलाक़ात में,
गले लगाते वक़्त मैंने पूछा था, हम बात तो करेंगे ना?
और तुमने कहा था, “बात करनी ही क्यों है।”
शायद वो पहली बार था, जब तुम्हारे किसी सवाल ने मुझे निरूत्तर किया था।
पर आज भी सालो बाद मैं बस यही सोचती हूँ,
बात तो करनी थी।
तुम्हें ये याद दिलाने के लिए कि धारी नहीं बल्कि चेक तुम पर अच्छा लगता है
और शर्ट आउट नहीं इन करना।
तुम्हें बताना था, कि आज भी पगडंडीयों पर चलते वक़्त मैं पहाड़ के किनारे ही चलती हूँ
और तुम्हारा पीछे से चिल्लाना 'अंदर चलो' अभी भी गूंजता है।
तुमसे पूछना था, अभी भी ज़्यादा देर तक तुम रूठ नहीं पाते क्या?
और पेट में तुम्हारे क्या अब कोई बात पचती है?
बात तो करनी ही थी,
फिर ना जाने क्यों तुमने ये कहा, “बात करनी ही क्यों है।”
और हाँ,
बात तो की ही है, इन सालों में भी
मैंने तुमसे
तुमने मुझसे
कभी गहरी सास लेते हुए,
कभी पुराने रस्तों से निकलते हुए
कभी पुरानी यादें सहेजते हुए
या बस कभी यूँही बेवक़्त नींद का इंतज़ार करते हुए।

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