माथा चूमना, आत्मा चूमने जैसा है
- Pahadan
- Nov 27, 2024
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एक दिन मुझसे किसी ने कहा था, माथा चूमना किसी की आत्मा चूमने जैसा है।
गीत चतुर्वेदी की ये लाइन जाने क्यों मुझे हमेशा याद रही।
शायद इसलिए क्योंकि पिता हमेशा माथा चूमा करते थे। वो उनका आशीर्वाद देने और मिलने का तरीक़ा होता था। लेकिन माँ हमेशा उन्हें इस बात पर डाँटती और मना करती थी। शायद वो सामाजिक सभ्यता से बंधी थी। फिर मैंने देखा की समय बदलते वो सिर्फ़ सिर पर हाथ रख कर मिलने लगे थे। मुझे यक़ीन हैं पिता के विचार इतने गहरे तो नहीं थे, वो तो बस उनकी अभिव्यक्ति का तरीक़ा था।
आज जब लोग पूछते हैं कि मुझे क्या याद आता है, कोई बात या कोई क़िस्सा। तो मुझे याद है उनका वो माथा जिसे अलविदा लेते वक़्त में चूमा करती थी, और उनका सिर जिसे खुजाने के वो मुझे पाँच रुपये दिया करते थे। मुझे याद आती हैं उनकी हथेलियों की वो गर्माहट। एक दम सपाट हाथ जिसमे सिर्फ़ तीन ही रेखाएँ थी और हाथों की वो ग़दलियाँ दबाना।
हमारे घर में प्रेम में स्पर्श का बहुत महत्व है. मैंने देखें हैं लोग जो गले लगने में ख़ुद को असहज महसूस करते हैं। लेकिन हमारे यहाँ ऐसा नहीं रहा। शब्दों से हम अपनी भावनाएँ भले ही ना व्यक्त करे, पर सट कर बैठने से, सिर पर हाथ फेरने से, गोद में सिर रखने से, कंधा टिकाने तक या फिर दूसरे की हथेंलियों को आखों में लगाने भर से ही हम सब कह जाते हैं।
मैंने गीता में पढ़ा था आत्मा मरती नहीं हैं पर एक शरीर से दूसरे शरीर में समा जाती। अगर मानो तो ये बात तसल्ली तो देती है कि पिता कहीं ना कहीं तो हैं।
पर यथार्थ में उनकी अनुपस्थिति भी इतनी जगह घेर लेगी ये अभी समझना बड़ा मुश्किल है।
पर यकीन हैं कि शायद फिर किसी एक हथेली की गर्माहट मुझे दर्ज करा जाए उनकी उपस्थिति।

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