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त्यौहार के बाद की ख़ामोशी बनकर

  • Writer: Pahadan
    Pahadan
  • Nov 25, 2023
  • 1 min read

तुम आना अबकी बार त्यौहार के बाद की ख़ामोशी बनकर

हाँ, सही सुना तुमने कि ख़त्म होने देना तीज- त्यौहार और समिट जाने देना जमघटों का दौर।

बताऊँ क्यों?

.

.

क्योंकि, देखो तुम आये हर बार त्यौहारों की रौनक़ बन कर।

कभी जगमग रोशनी या फिर रंगों के लिबास ओढ़ कर।

पर, उस बीच मैं कभी समझ ही नहीं पायी तुम्हारे होने को।

या दिनभर की तमाम व्यस्तताओं में नहीं पूछा मैंने कि तुम कैसे हो?


और कभी घर को सजाते तो बिखरे समान को समेटते- समेटते,

मैं सहेज ही नहीं पायी तुम्हारी उपस्थिति वैसे, जैसे गुज़ारी थी मैंने तुम्हारी अनुपस्थिति ।


इसीलिए तो मैं कहती हूँ,

अबकी बार आना तुम त्यौहार के बाद की ख़ामोशी बनकर।

हवा के उस ठहराव में तुम आना,

ना की बदलती-मिलती ऋतुओं में।


जब ले चुका हो मौसम अपनी पूरी करवट

प्रवास कर जाएँ साँझ को घर ढूँढते ये पंछी

और स्थिर हो जाये ये पूरा आकाश

तब तुम आना।


सुंदर, सजे घर में ना सही, पर एकांत से लदे मेरे मन से मिलने

पूरी पकवान खाने ना सही, चाय बिस्कुट संग कुछ बातें करने

तुम आना,

त्यौहार के बाद की ख़ामोशी बनकर

और वादा करती हूँ, फिर नहीं कहूँगी मैं तुम्हें

एक और दिन रुकने को।


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