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प्रेम में तुम्हारे

  • Writer: Pahadan
    Pahadan
  • Aug 13
  • 1 min read

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प्रेम में तुम्हारे,

चाहिए कुछ नहीं, बस इतना कि 

हो तुम,सुबह की सैर पर जाने को


टाढ़ पर रखा डिब्बा उतार देने को

टेढ़ी रोटी को भी गोल बताने को

बदलते मौसम में नए पौध लाने को

बेकार चुटकुलों पर ठहाके लगाने को


मेरे जाते वक्त माथा चूम जाने को

और जब लौटूँ तो साथ चाय बनाने को

मेरे पागलपन में थोड़ा और पगलाने को,

कुछ काम बाँटने और कुछ काम बढ़ाने को


दिन ढलते घंटों बैठ के बतियाने को

हाथ पकड़कर सोने और पीठ खुजाने को

प्रेम में तुम्हारे, चाहिए बस इतना कि 

हो तुम हमेशा, संग निभाने को..


 
 
 

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